सय्यद उल उलेमा हज़रत अहमद हसन मुहद्दिस अमरोहवी की खिदमात:- साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी
अमरोहा शुमाली हिंदुस्तान का एक क़दीम मर्दुम-खैज़ खित्ता है। इस सरज़मीन ने तमाम फ़ुनून के माहिर अफ़राद को पैदा किया है।यहां हर दौर में बड़े बड़े बा-कमाल उलेमा हुए। और कुछ खानदानों में मुसलसल उलेमा पैदा होते रहे हैं।
सय्यद-उल-उलेमा हज़रत मौलाना सय्यद अहमद हसन मुहद्दिस अमरोहवी साहब क़ासिम-उल-उलूम वल-मआरिफ़ हज़रत मौलाना मुहम्मद क़ासिम नानौतवी साहब के मुमताज़ और अरशद तलामज़ा में से थे। खुदा के फ़ज़्ल ओ इनाम से आप एक बा-कमाल उस्ताद की शफ़क़त व तवज्जो और पैदाइशी व फ़ितरी सलाहियत की मदद से सानी ए क़ासिम कहलाये।
हज़रत क़ासिम नानौतवी के शागिर्दों की तादाद बहुत है लेकिन उनके तीन शागिर्द बहुत मशहूर हुए हैं।
1. शैख़-उल-हिन्द हज़रत मौलाना महमूद हसन उस्मानी मुहद्दिस देवबंदी साहब
2. सय्यद-उल-उलेमा हज़रत मौलाना सय्यद अहमद हसन मुहद्दिस अमरोहवी साहब
3.फख्र-उल-उलेमा हज़रत मौलाना फख्र-उल- हसन गंगोही साहब
हज़रत मुहद्दिस अमरोही का इस्मे गिरामी सय्यद अहमद हसन था।और आपके वालिद का नाम अकबर हुसैन था।रिज़वी सादात के खानदान में हज़रत मुहद्दिस अमरोहवी की विलादत 1247 हिज्री (1850 इस्वी) को अमरोहा में हुई।( सय्यद-उल-उलेमा पेज 20)
हज़रत मुहद्दिस अमरोही साहब का शजरा-ए-नसब हज़रत शाह अब्बन बद्र चिश्त रह० से इस तरह मिलता है।
सय्यद अहमद हसन बिन सय्यद अकबर हुसैन बिन सय्यद नबी बख्श बिन सय्यद मुहम्मद हुसैन बिन पीर सय्यद मुहम्मद हसन बिन सय्यद सैफ उल्लाह बिन सय्यद अबुल माली बिन सय्यद अबुल मकारिम बिन सय्यद अबुल क़ासिम बिन हज़रत शाह अब्बन रह०।
आपने इब्तिदाई तालीम अरबी व फ़ारसी अपने वतन के बुलंद पाया उलेमा मौलाना सय्यद राफत अली साहब रह० साकिन दरबार-ए-कलां, मौलाना करीम बख्श साहब नख्शबी रह० साकिन चाह शोर,मौलाना सय्यद हुसैन साहब जाफ़री साकिन चाह शोर से हासिल की। तिब्ब अमरोहा के मशहूर तबीब हकीम अमजद अली खां कंबोह से पढ़ी।( सय्यद उल उलेमा पे०21)
हज़रत कासिम उल उलूम साहब के अलावा आपके असातज़ा में मौलाना अहमद अली मुहद्दिस सहरानपुरी साहब,कारी अब्दुल रहमान पानिपति साहब,और मौलाना अब्दुल क़य्यूम साहब भोपाल भी शामिल हैं। हज-ए-बैत-उल्लाह को तशरीफ़ ले गए तो वहां हज़रत मौलाना शाह अब्दुल गनी मुजद्दिदी मुहाजिर मदनी साहब से भी हदीस की सनद हासिल की।
आप हज़रत क़ासिम साहब के मुरीद और खलीफा थे बाद में मौलाना हाजी इमदाद उल्लाह फ़ारूक़ी मुहाजिर मक्की रह० से भी खिलाफत हासिल हुई ।
तमाम उलूम ओ फुनून कि तकमील के बाद के हज़रत क़ासिम नानौतवी साहब के हुक्म पर खुर्जा के मदरसे से दर्स ओ तदरीस का आगाज़ किया। खुर्जा का ये मदरसा "मदरसा कासिमिया के नाम से क़ायम था।
(सय्यद उल उलेमा पे०22,23)
आपके मुरीद मुंशी जमील उद्दीन बेखुद सम्भली साहब ने संभल बुला लिया। यहां से आप दिल्ली के मदरसे अब्दुर्रब चले गए यहां सदर मदर्रीस रहे (सय्यद उल उलेमा पे० 25)
हज़रत मुहद्दिस अमरोहवी साहब मौलाना क़ासिम साहब के हुक्म से मदरसा शाही मुरादाबाद तशरीफ़ ले आये।
जहां आप शैख़ उल हदीस रहे।
हज़रत नानौतवी ने अपने साहबज़ादे हाफिज़ मुहम्मद अहमद को तालीम हासिल करने के लिए हज़रत मुहद्दिस अमरोहवी साहब के पास मुरादाबाद भेज दिया। हज़रत मुहद्दिस इस मदरसे के पहले सदरुल मुदर्रिसीन और शैख़ उल हदीस थे।शुरआत ही में इस मदरसे में तल्बा जौक़ दर जौक़ आने लगे और देखते ही देखते ये मदरसा देवबंद और सहरानपुर के बाद एक अज़ीमुश्शान मदरसा बन गया।
हज़रत मुहद्दिस अमरोही रमज़ान 1303 हिज्री को अपने वतन ए अज़ीज़ अमरोहा तशरीफ़ ले आये और यहां मदरसा इस्लामिया अरबिया की नशअत-ए सानिया फ़रमाई । यह मदरसा हज़रत क़ासिम नानौतवी साहब का कायम किया हुआ है ।हज़रत मुहद्दिस ने नए तरीके से इसकी बुनियादों को मज़बूत करके इसमे तमाम उलूम ओ फ़ुनून की तालीम जारी की।अपनी और अपने साथियों की कोशिशों से जामा मस्जिद अमरोहा की तामीर में इज़ाफ़ा किया।यहां आपका इल्मी फ़ैज़ ज़िन्दगी भर जारी रहा।आपकी वफ़ात 28/29 रबी उल अव्वल 1330 हिज्री की दरमियानी शब में बाद नमाज़ ए ईशा 11 बजे हुई।19 मार्च 1912 को सहने जामा मस्जिद अमरोहा के जुनूबी गोशे में दफ़न हुए।बहुत से हज़रात ने आपकी रेहलत पर तारिख ए वफ़ात निकाली हाफ़िज़ मज़हरुद्दीन फ़रीदी अमरोहवी ने बखिशश ए पाक दामने بخششِ پاک دامنے से आपकी तारिख ए वफ़ात बरामद की जो मुख़्तसर और बहुत खूब है।
साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी