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डॉ०मोहम्मद अहसान हुसैन रह० की अदबी,तालीमी,समाजी खिदमात
साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी

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डॉ० मोहम्मद अहसान हुसैन रह० की विलादत 15 सितंबर 1910 को ईल्म ओ अदब की सरज़मीन सूफियों की बस्ती अमरोहा में हुई।
आपके वालिद का नाम उस्मान हुसैन था। दस साल की उम्र में वालिदैन के साये से महरूम हो गए

मास्टर अहसान साहब पर गुफ़्तुगू के दौरान उनके साहबज़ादे जनाब मास्टर असलम उस्मानी साहब बताते हैं कि अहसान साहब ने अपनी तालीम अमरोहा,दिल्ली और लाहौर से हासिल की। उनकी मुलाकात बाबा-ए-उर्दू मौलवी अब्दुल हक़ से भी रही। मौलवी साहब ने अहसान साहब को अपने दफ्तर में जगह भी दी।
उसके बाद आप पूर्व राष्ट्रपति डॉ०ज़ाकिर हुसैन व मशहूर सहाफी हयात उल्लाह अंसारी से मुतारीफ हुए।

आप बुज़ुर्गों के साथ बैठ कर कौम के माज़ी व मुस्तक़बिल पर गुफ़्तुगू करते थे। बुज़ुर्गों के लिए आपकी अक़ीदत ओ मुहब्बत सच्ची थी जिसके वसीले से आप मुहिब्ब-ए- उर्दू व मुहिब्ब-ए-वतन बने।
डॉ अहसान हुसैन साहब ने उर्दू ज़ुबान को मुल्क की दूसरी ज़ुबान का दर्जा दिलाने में नुमाया काम अंजाम दिया।
आपने 1946 में मरकज़-ए-तालीम नाम से एक स्कूल कायम किया ताकि मुस्लिम बच्चे दीनी व दुनियावी तालीम हासिल कर सकें।
जामिया उर्दू अलीगढ़ के इम्तेहानात के लिए एक सेंटर कायम किया।
अब्दुल करीम खान साहब को एक तालीमी इदारा कायम करने की तरग़ीब दी ।
मुस्लिम टेक्निकल स्कूल को अब्दुल करीम खान कॉलेज की शक्ल करके कौम को पहला कॉलेज दिया।
ईद मिलादउन्नबी का पहला जुलूस 1946 में डॉ अहसान साहब की सरपरस्ती में निकला जिसमे मरकज़-ए-तालीम के स्टूडेंट शामिल हुए।
आप जामिया मिल्लिया इस्लामिया अरबिया जामा मस्जिद अमरोहा के मोहतमिम भी रहे और इन्तेज़ामिया खिदमात अंजाम दी।

सय्यद क़ैसर मुबीन अपने मज़मून में लिखते हैं कि डॉ मोहम्मद अहसान हुस्सैन साहब का सिलसिला-ए-नसब अहद-ए-बलबन के मारूफ आलिम क़ाज़ी जलालउद्दीन(मोहम्मद बिन अबी बक्र) से मिलता है।
इब्ने बतूता ने अपने सफरनामा में जिस शम्स बदख्शानी का ज़िक्र अमरोहा के असीर की हैसियत से किया है वो क़ाज़ी जलालउद्दीन के पोते थे।

डॉ अहसान साहब का विसाल 18 जून 2004 को हुआ।
अमरोहा आज भी डॉ०अहसान हुसैन साहब की खिदमात को याद करता है ।

डॉ०अल्लामा इक़बाल रह० का एक शेर डॉ० अहसान हुसैन साहब की नज़्र-

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

अल्लाह आपके दरजात बुलंद करे आमीन।

साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी

नोट:- ये तमाम मालूमात मैंने मास्टर असलम उस्मानी साहब व सय्यद कैसर मुबीन साहब के मज़मून से फ़राहम की हैं

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