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शब्बीर हुसैन खान नियाज़ी साहब की दीनी व अदबी खिदमात:-
                                            साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी

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जनाब शब्बीर हुसैन खान नियाज़ी क़ादरी का तख़ल्लुस 'खान नियाज़ी अमरोहवी' 8 अगस्त 1939 को अमरोहा में पैदा हुए। आपके वालिद का इस्मे गिरामी गौहर हुसैन खान नियाज़ी है। हज़रत रुक्नउद्दीन शाह पीरक एहदे मुग़लिया में अमरोहा तशरीफ़ लाये और यहीं के हो रहे आपका ताअल्लुक़ अफ़ग़ानों के क़बीला ए नियाज़ी से था।शाह पीरक की औलाद में कप्तान अब्दुल रज़्ज़ाक खान के नबीरा गौहर हुसैन खान के फ़र्ज़न्द ए अर्जुमंद शब्बीर खान नियाज़ी थे।इण्टर पास करके इलेक्ट्रिकल में आई०आई०टी० डिप्लोमा हासिल किया।तसव्वुफ़ से दिलचस्पी इब्तिदा से थी,लिहाज़ा आप अपने वक़्त के के मुर्शिद ए कामिल हज़रत मौलाना सय्यद ख़लील काज़मी 'ख़ाकी अमरोहवी' के दस्ते हक़ परस्त पर बैअत हो गए।सिलसिला ए क़ादरी का फ़ैज़ ख़्वाजा निज़ामउद्दीन बदायुनी संजानी रह० से जारी है।
आपके मुरीदेन और आपकी ख़ानक़ाहें उत्तर प्रदेश,उड़ीसा,बिहार,बंगाल,महाराष्ट्र,गुजरात और पाकिस्तान में मौजूद हैं।
लोगों के दरमियान आपने न सिर्फ इल्मी व अदबी खिदमात अंजाम दी बल्कि मज़हब ओ मसलक की तबलीग़ ओ इशाअत में भी कोई कमी नहीं की।आपको शायरी का शौक़ बचपन ही से था इस फ़न में आपको हज़रत अबरार हसनी गिन्नौरी से शर्फ़े तलम्मुज़ हासिल था।आपका मुख़्तसर सा नातिया व मंक़बती मजमुआ ए कलाम "सिल्के गौहर" के नाम से मंज़र आम पर आ चुका है जिसको अमरोहा के उस्ताद शायर मरहूम तरब ज़ियाई साहब ने मुरत्तब किया है।
2013 में आपका विसाल अमरोहा में हुआ आपकी मज़ार मोहल्ला शाह नियाज़ी राम तालाब अमरोहा पर वाक़ह है।
" पत्थर तो हक़ीक़त में हुआ करता है पत्थर
हीरा जो बनाती है वो मुर्शिद की नज़र है

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