बर्रे सग़ीर पाक ओ हिन्द के अज़ीम रहनुमा वक़ार उल मुल्क और अलीगढ़ तहरीक (अलीगढ़ मूवमेंट),मुस्लिम लीग:-
साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी
सर सय्यद अहमद खान के दोस्तों में नवाब वक़ार उल मुल्क की शख्सियत क़ौमी कामों में बेलौस और पुरखुलूस इंहिमाक के बाइस एक इम्तियाज़ी शान की हामिल है।आप अलीगढ़ तहरीक में सर सय्यद अहमद की अख़लाक़ी पुश्त ओ पनाह हैं।
नवाब वक़ार उल मुल्क के लक़ब से मशहूर मुश्ताक़ हुसैन ज़ुबैरी के अजदाद का ताअल्लुक़ मेरठ से था लेकिन उनका ननिहाल अमरोहा का रहा है।
आपकी विलादत 24 मार्च 1841 ई० को मेरठ में हुई।आप 6 महीने के ही थे कि आपके वालिद फ़ज़ल हुसैन ज़ुबैरी का इंतेक़ाल हो गया।कुछ अर्से बाद आपकी वालिदा मक़बूल-उन-निसा आपको अमरोहा लेकर आ गयीं। आपके नाना का घर अमरोहा के मोहल्ला शाही चबूतरा में था।
आपने इब्तिदाई तालीम अमरोहा ही में हासिल की और टीचर भी रहे।
अलीगढ़ तहरीक:- 1866 में 25 साल की उम्र में आपने अलीगढ़ तहरीक के कारकून के तौर पर अपने सियासी कैरियर के आगाज़ किया और इसी सिलसिले में इसके विंग साइंटिफिक सोसाइटी के मेम्बर बने।
कुछ अर्से बाद हुकूमते हैदराबाद रियासते दक्कन में लॉ सेक्रेटरी के तौर पर खिदमात अंजाम दी।
फिर निज़ाम ऑफ हैदराबाद के हुक्म से डिपार्टमेंट ऑफ रेवेन्यू में शामिल हुए।
दिसंबर 1890 ई० में नवाब वक़ार उल मुल्क MOA कॉलेज ( मौजूदा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) में शामिल हुए।आप सर सय्यद अहमद के सबसे पुरजोश पैरोकार में से थे और उनकी तहरीक के एक सरगर्म कारकून भी थे।
जब कॉलेज फण्ड कमेटी बनी तो आप उसके मेंबर रहे और सर सय्यद की तहरीक को मक़बूल बनाने के लिए मुसलसल काम किया।
आपने MOA कॉलेज के क़याम के लिए उस वक़्त के मयार के मुताबिक 750,000 रुपये की एक बड़ी रक़म इखट्टा की।
1907 में आपको MOA कॉलेज का एज़ाज़ी सेक्रेटरी मुकर्रर किया गया।
मुस्लिम लीग:- दिसम्बर 1904 को ढाका में ऑल इंडिया मोहम्मडन एडुकेशन के नाम से एक कॉन्फ्रेंस नवाब वक़ार उल मुल्क की सदारत में मुनअक़िद हुई जिसमें मौलाना मोहम्मद अली जौहर,मौलाना शौकत अली,हकीम अजमल अली खान, मौलाना ज़फर अली खान, हसरत मोहानी वगैरा हम शरीक हुए, उसमे नवाब सलीम उल्लाह खान ने ये तजवीज़ पेश की कि हिंदुस्तान में मुसलमानो के मौजूदा हालात को देखते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के नाम से अलेहदा सियासी तंज़ीम कायम की जाए, नवाब वक़ार उल मुल्क इस तंज़ीम के जनरल सेक्रेटरी बने।
खिताब:- 1908 ई० में उनकी शानदार खिदमात के नतीजे में ब्रिटिश हुकूमते हिन्द ने आपको नवाब के खिताब से नवाज़।
हैदराबाद के निज़ाम ने आपको वक़ार-उद-दौला, इन्तिसार-ए-जंग और वक़ार उल मुल्क के खिताब से नवाज़ा।
नवाब वक़ार-उल-मुल्क बर्रे सग़ीर हिन्द ओ पाक सरज़मीन के एक अज़ीम रहनुमा रहे।आपका इंतेक़ाल 28 जनवरी 1917 को अमरोहा ही में हुआ और उनकी ख्वाहिश के मुताबिक उन्हें अमरोहा ही में दफ़न किया गया। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नवाब वक़ार उल मुल्क से मंसूब एक अहम हॉल आपकी अज़मत का पता दे रहा है।
अमरोहा की साबिक चेयरपर्सन बेग़म आफ़ताब सैफ़ी ने अमरोहा म्युनिसिपल कौंसिल से "वक़ार उल मुल्क"गेट तामीर कराया और पहली बार उनकी शख़्सियत पर एक किताब शाया कराई।
हुकूमत ए हिन्द से दरख्वास्त है कि हिन्द ओ पाक के अज़ीम रहनुमा वक़ार उल मुल्क की कब्र को मक़बरे की शक़्ल दी जाए।
शायर ए मशरिक हज़रत अल्लामा इक़बाल रह० ने वक़ार उल मुल्क की तारीख़ ए वफ़ात कही है।
نواب وقار الملک و ملت
افشاند سوۓ جناں رکابش
بر لوحِ مزار اور شتم
انجام بخیر، با خطابش
माखीज़:- तारीख़-ए-हिन्द माज़ी और हाल मुहम्मद इलियास नदवी,अमरोहा की आलमी शख़्सियात प्रो नाशिर नक़वी एंड उवैस मुस्तफ़ा रिज़वी, सर सैयद और अलीगढ़ तहरीक खलीक अहमद निज़ामी